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Supreme Court Hearing On Waqf Act, Kno The Arguments Of Both Side, Kapil Sibal, News In Hindi – Amar Ujala Hindi News Live

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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि जो संपत्तियां वक्फ घोषित हो चुकी हैं, चाहे वह परंपरा से वक्फ हो या बाकायदा दस्तावेज से घोषित वक्फ हो, उन्हें वापस सामान्य संपत्ति घोषित नहीं किया जाएगा। हालांकि केंद्र सरकार ने इस पर आपत्ति जताई और अदालत से आग्रह किया कि इस पर कोई आदेश देने से पहले उसे सुना जाए। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 17 अप्रैल दोपहर 2 बजे अगली सुनवाई तय की है।

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कपिल सिब्बल ने रखी याचिकाकर्ताओं की तरफ से दलील

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने वक्फ संशोधन अधिनियम का हवाला दिया और कहा कि वह उस प्रावधान को चुनौती दे रहे हैं, जिसमें कहा गया है कि केवल मुसलमान ही वक्फ बना सकते हैं। सिब्बल ने पूछा, ‘राज्य कैसे तय कर सकता है कि मैं मुसलमान हूं या नहीं और इसलिए वक्फ बनाने के योग्य हूं या नहीं?’ उन्होंने कहा, ‘सरकार कैसे कह सकती है कि केवल वे लोग ही वक्फ बना सकते हैं जो पिछले पांच सालों से इस्लाम का पालन कर रहे हैं?’ 

‘नए अधिनियम में गैर मुस्लिमों को दी गई जगह’

कपिल सिब्बल ने कहा कि सेंट्रल वक्फ काउंसिल (1995) के तहत बोर्ड में सभी मुस्लिम होते थे। हिन्दू और सिख बोर्ड में भी सभी सदस्य हिन्दू और सिख ही होते हैं। नए वक्फ संशोधित अधिनियम में विशेष सदस्यों के नाम पर गैर मुस्लिमों को जगह दी गई है। यह नया कानून अधिकारों का सीधा उल्लंघन है। कपिल सिब्बल ने कहा कि नए कानून के मुताबिक, अगर किसी ने 5 साल से कम वक्त से इस्लाम धर्म अपना रखा है तो वह संपत्ति दान नहीं कर सकता। यह गलत है, मेरी संपत्ति है, उसपर मेरा अधिकार है। इस तरह से रोक कैसे लगाया जा सकता है। कपिल सिब्बल ने इस दौरान राम जन्मभूमि के फैसले का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि धारा 36, आप उपयोगकर्ता की तरफ से बना सकते हैं, संपत्ति की कोई आवश्यकता नहीं है।

अन्य अधिवक्ताओं ने भी रखी दलील

वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी, जिन्होंने कुछ याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व किया, ने कहा कि वक्फ अधिनियम का पूरे भारत में प्रभाव होगा और याचिकाओं को उच्च न्यायालय में नहीं भेजा जाना चाहिए। जबकि वक्फ अधिनियम का विरोध कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि उपयोगकर्ता की तरफ से वक्फ इस्लाम की एक स्थापित प्रथा है और इसे खत्म नहीं किया जा सकता। मुस्लिम पक्ष की तरफ से बात रखते हुए एक अन्य अधिवक्ता राजीव शकधर ने कहा कि मूल रूप से अनुच्छेद 31 को हटा दिया गया था। वे संपत्ति के साथ कब छेड़छाड़ कर सकते हैं? नैतिकता, स्वास्थ्य आदि के अधीन, किसी को मुस्लिम के रूप में प्रमाणित करने के लिए उन्हें 5 साल की परिवीक्षा अवधि की आवश्यकता होती है। इस दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि यह कानून इस्लाम धर्म की अंदरूनी व्यवस्था के खिलाफ है। राजीव धवन ने कहा कि संवैधानिक हमले का आधार यह है कि वक्फ इस्लाम के लिए आवश्यक और अभिन्न अंग है। धर्म, विशेष रूप से दान, इस्लाम का आवश्यक और अभिन्न अंग है।

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