मुंह के कैंसर के 63 फीसदी मरीज इलाज के बाद पांच साल भी नहीं जी पाते। यह खुलासा भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के एक अध्ययन में हुआ है, जिसे जामा नेटवर्क मेडिकल जर्नल ने प्रकाशित किया है।
अध्ययन के मुताबिक, भारत में मौखिक कैंसर से पीड़ित मरीजों में से 37 फीसदी ही इलाज खत्म करने के पांच साल तक जीवित रह पा रहे हैं। 10 राज्यों के करीब 14 हजार से ज्यादा मरीजों पर हुए इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने साफ तौर पर कहा है कि प्रारंभिक पहचान और समय पर इलाज लेने से मरीजों के ज्यादा जीने की संभावना मजबूत हो सकती है। आईसीएमआर के राष्ट्रीय रोग सूचना विज्ञान एवं अनुसंधान केंद्र के इस अध्ययन में तिरुवनंतपुरम, सेवाग्राम, इंफाल, गुवाहाटी, अहमदाबाद, अगरतला, मुंबई, आइजोल और गंगटोक के क्षेत्रीय कैंसर अस्पतालों में इलाज कराने वाले मरीजों को शामिल किया है।
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राज्यों की कैंसर रजिस्ट्री से 14,059 रोगियों का चयन कर शोधकर्ताओं ने मौखिक कैंसर से पीड़ित मरीजों में पांच-वर्षीय औसत जीवन आयु दर का पता लगाया है। अध्ययन के परिणाम भारत में मौखिक कैंसर के रोगियों के लिए खराब परिणामों और असमानताओं को उजागर कर रहे हैं। आईसीएमआर के मुताबिक, भारत में हर साल मुंह के कैंसर से जुड़े करीब 77,000 नए मामले सामने आते हैं और 52,000 मौतें हो रही हैं। भारत में कुल कैंसर पीड़ितों में मुंह के कैंसर के 30 फीसदी मरीज शामिल हैं।
तंबाकू प्रमुख वजह, समय पर इलाज जरूरी
धूम्रपान या फिर चबाकर तंबाकू उत्पादों का इस्तेमाल और शराब का सेवन इसके प्रमुख कारक हैं। समय पर इलाज से इससे मृत्यु की आशंका को कम िकया जा सकता है। आईसीएमआर के मुताबिक, धूम्रपान और शराब के सेवन से बचने के साथ साथ लोगों को अपने होठों को भी धूप से बचाना चाहिए और मुंह की स्वच्छता बनाए रखनी चाहिए। अगर मुंह में किसी भी तरह के छाले या जख्म की शिकायत है तो डॉक्टर को जरूर दिखाना चाहिए।
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ग्रामीण क्षेत्रों के लिए चुनौती बड़ी…
आईसीएमआर के राष्ट्रीय रोग सूचना विज्ञान एवं अनुसंधान केंद्र के प्रमुख डॉ. प्रशांत माथुर बताते हैं कि मौखिक कैंसर की जांच और इलाज के बाद मरीज का जीवन कैसा रहता है, वह कितने दिन जीवित रह पाता है, शहरों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों के मरीज इलाज के बाद काफी कम जीवित रह पाते हैं। यह स्थिति कैंसर देखभाल और सेवाओं की गुणवत्ता में असमानताओं का संकेत दे रही है।